Vichar se Vishwas

Vichar ek beej hai, Vishwas uska vraksh

Anoop Agarwal

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लेखक: डॉ. अनूप अग्रवाल — एक चेतन क्रांति के सूत्रधार

परिचय: डॉ. अनूप अग्रवाल एक जाग्रत और संवेदनशील विचारक, लेखक, और समाज-परिवर्तन के प्रेरक व्यक्तित्व हैं, जिनका उद्देश्य केवल लिखना नहीं बल्कि जगाना है। वे समाज, शिक्षा, पर्यावरण, अध्यात्म और विज्ञान के संगम पर आधारित नई सोच को जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है।

लेखन की मूल भावना:
अनूप जी का लेखन किसी वाद या मत तक सीमित न होकर, मानव चेतना के मूल प्रश्नों की तलाश करता है। वे श्वास, स्वर, ध्वनि, पंचतत्त्व, प्रकृति, विज्ञान और वैदिक अनुभूतियों को जोड़ते हुए एक समग्र मानवता की ओर ले जाने वाले विचार प्रस्तुत करते है।

सतयुग की ओर एक दीपशिखा
69 वर्षीय डॉ. अनूप अग्रवाल जी, दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर है। वे केवल एक लेखक नहीं, बल्कि एक साधक है — जो आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन के गूढ़ रहस्यों को जानने की निरंतर जिज्ञासा में संलग्न है।

उनकी साधना केवल स्वयं के लिए नहीं, बल्कि मानव जाति के उत्थान के लिए है। वे दिन-प्रतिदिन ध्यान, स्वाध्याय, प्रकृति के साथ संवाद और ध्वनि-चिकित्सा जैसे माध्यमों से जो अनुभव प्राप्त करते हैं, उन्हें लेखों, प्रस्तुतियों, शोध व संवादों के रूप में समाज के साथ साझा करते है — ताकि हर व्यक्ति स्वयं में झाँके और भीतर के प्रकाश से जुड़कर सतयुग की ओर एक कदम बढ़ा सके।

अनूप हर सुबह सूर्य से प्रेरणा लेता,
धरती को छूकर कृतज्ञता जताता,
वायु से बातें करता, जल से स्नान कर
और आकाश की ओर ध्यान कर
अपने अंदर की चेतना को जाग्रत करता।
उसने कभी ग्रंथ नहीं पढ़े –
लेकिन प्रकृति उसकी गुरु बन गई।


“दर्द का एहसास तभी होता है जब चोट लगे। लेकिन चोट लगना उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना उस चोट से सीखना, बदलाव लाना और दूसरों को दिशा देना।”

डॉ. अनूप अग्रवाल इस सत्य को जीते हैं। जब जीवन ने उन्हें अपने ही अपनों से विश्वासघात, झूठ, अंधविश्वास और नकारात्मक वातावरण के अनुभव दिए, तब उन्होंने टूटने की बजाय जागने का मार्ग चुना। हर चोट को उन्होंने एक सीख में बदला और हर अनुभव को एक खोज में। उन्होंने मानव सोच, व्यवहार, औरा, क्रिस्टल्स और अध्यात्म पर गहराई से मनन कर उसे कलमबद्ध किया।

वे केवल लेखक नहीं हैं — वे एक साधक, मार्गदर्शक और समाज में चेतना के वाहक हैं। उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है; जो वे लिखते हैं, वही वे जीते हैं। समाज कल्याण उनकी लेखनी का विषय नहीं, उनका उद्देश्य है।
डॉ. अनूप अग्रवाल के द्वारा प्रस्तुत किया गया रूपक अत्यंत गहन, प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध है। इसमें जीवन, साधना, समाज और चेतना की परत-दर-परत व्याख्या भी समाहित है – जो हर पाठक को भीतर तक छू सकेगा। आपके विचार बहुत गहन और सूक्ष्म हैं। आपने “अज्ञात सत्य”, “इच्छा”, “पसंद”, और “बुद्धि” के बीच के गहरे संबंध को उजागर किया है। आपने बहुत ही सारगर्भित बात कही — आज वास्तव में आवश्यकता है कि हम परंपरागत मान्यताओं के मूल तत्व को पहचानें, उन्हें अंधविश्वास से अलग करें, और उनके पीछे छिपे वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक सत्य को जनमानस के सामने लाएँ।

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